Welcome to Bhagatpura, Dist. Sikar (Rajasthan)

Jun 7, 2009

परिचय:महावीर सिंह शेखावत

गांव के कुछ लोगों के परिचय की इस श्रृंख्ला में आज प्रस्तुत कर रही हूँ मेरे काकोसा (चाचाजी) महावीर सिंह जी शेखावत का परिचय :-
आपका जन्म भगतपुरा गांव में ही श्री मदन सिंह जी शेखावत के घर २५ मार्च १९६९ को हुआ था | श्री कल्याण कालेज सीकर से अपनी पढाई पूरी करने के बाद कुछ दिन दिल्ली में कार्य किया उसके बाद कई वर्षों तक जयपुर की एक कंपनी में लेखाकार का कार्य करने के बाद आप ८ साल पहले इटली चले आये | जहाँ आप अपने परिवार सहित (भैया भरत सिंह व विवेक सिंह सहित ) इटली के मिलान शहर के पास रहते हुए मिलान शहर में ही एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है | गांव व सीकर की स्थानीय राजनीती में गहरी रूचि रखने व मिलनसार स्वभाव के चलते आपको गांव का हर व्यक्ति पसंद करता है | गांव व सीकर की स्थानीय राजनीती में रूचि का पता इसी बात से चलता है कि हमें गांव व स्थानीय राजनीती के समाचार दिल्ली में वाया इटली आपसे ही पता चलते है | पिछले दिनों २८ मार्च २००९ को मेरे भैया की शादी में चाचाजी खास तौर पर इटली से भगतपुरा पधारे थे और अपनी मित्र मंडली के साथ शादी में नाचने का भरपूर मजा लेते हुए खूब धमा-चौकडी मचाई | चाचाजी आपकी अगली भारत यात्रा का इंतजार रहेगा |

Dec 31, 2008

गांव का पनघट


चित्र में ये हमारे गांव का पनघट है जो आज वीरान पड़ा है कभी यहाँ पुरे दिन मटके लेकर पानी लेने आने वालों की चहल-पहल लगी रहती थी, आज इस पनघट के नल उखड़ चुके है लेकिन आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले इसी पनघट के इन्ही नलों पर पानी भरने के लिए मटकों की लाइन लग जाया करती थी | सभी जातियों के लिए यहाँ अलग-अलग नल लगे थे अनुसूचित जातियों के लिए अलग व सवर्णों के लिए अलग और सवर्णों में भी ब्राहमणों के लिए अलग नलों की व्यवस्था थी आज सुना पड़ा यह पनघट कभी गांव का एक तरह का सामुदायिक स्थल ही हुआ करता था किसी भी व्यक्ति से मिलना हो सुबह-शाम यहाँ गांव के हर एक आदमी से मुलाकात हो जाती थी क्योंकि पानी लेने सभी ग्रामवासियों को यही आना पड़ता था | गांव से बाहर नौकरी करने वाला कोई भी व्यक्ति जब भी छुट्टी आता था उससे भी यही सभी के साथ मुलाकात हो जाया करती | गांव का हर अच्छा बुरा समाचार इसी पनघट पर मिल जाया करता था | पशुपालक सुबह-शाम अपने-अपने पशुओं को पास ही बनी पानी की खेली में पानी पिलाने लाया करते थे | हम भी सभी दोस्त पानी के मटके भरते हुए ही यहीं खेलकूद व अन्य सामूहिक कार्यों की प्लानिंग कर लिया करते थे और तो और सभी दोस्त रविवार को अपने अपने सारे मैले कपड़े इक्कठे कर यही धोने एक साथ ही आया करते थे क्या मजा आता था उस समय मिलजुल कर कपड़े धोने का, कोई नल से पानी की बाल्टी भर कर ला रहा है,कोई कपडों पर साबुन लगा रहा होता तो कोई धुले कपडों को सुखा रहा होता |
कंधे पर मटका रखकर जब घर में जरुरत का पानी भरते थे तो उस पानी का उपयोग भी बहुत मितव्ययता के साथ होता था जिससे गांव का हर रास्ता,हर किसी के घर में कहीं कीचड़ नही होता था | हमारे द्वारा की गई केसी भी गलतियों के लिए पानी भरते समय वहां आने वाले गांव के बुजुर्गों व ताऊ टाइप लोगों से बहुत सारी उलाहना भरी नसीयते झेलनी पड़ती थी सो हम सभी में से कोई भी बच्चा किसी भी तरह का ग़लत काम करने से बचता था परिणाम स्वरूप डर मारे ही सही बच्चे बुरी आदतों से दूर ही रहते थे इसी पनघट पर बुजुर्ग लोगों द्वारा मिलने वाले उपदेश बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाते थे |
आज से 25 साल पहले घरों में नल लगने बाद से यह पनघट रूपी सामुदायिक स्थल सुना पड़ा है अब गांव में कौन छुट्टी आया पता ही नही चलता, गांव में किसी का कोई दुःख दर्द का समाचार भी आसानी से नही मिलता, गांव का कौनसा बच्चा किसका बेटा है कम ही लोग पहचान पाते है जान पहचान ही कम होती जा रही है |आसानी से और बिना मेहनत किए सभी घरों में नल द्वारा प्रचुर मात्रा में उपयोग लिए के पानी की उपलब्धता ने पानी का दुरूपयोग बढ़ा दिया है हर एक व्यक्ति एक बाल्टी पानी की जगह पॉँच बाल्टी पानी बहाता है दुरूपयोग के चलते रास्तों में,घरों के आगे कीचड़ फैलने लगा वह तो शुक्र है सरकार का जिसने समय रहते पक्की नालिया बना दी वरना रात्रि के समय तो एक घर से दुसरे घर घर जाना भी कीचड़ की वजह से दूभर हो जाता,खैर पक्की सरकारी नालियों ने कीचड़ से तो मुक्ति दिला दी लेकिन गिरते भू-जल के बावजूद हर घर व हर गांव में ऐसे ही हम पानी आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल कर दुरूपयोग करते रहे तो वो दिन दूर नही जब कुएं सुख जायेंगे और हम या हमारी आने वाली पीढियाँ पानी की एक बूंद के लिए भी तरस जायेगी |



गांव स्थित सार्वजनिक कुआँ गांव का बस स्टैंड