ग्रामीण भारत की मासिक पत्रिका "भू-मीत" के 16 अगस्त से 15 सितम्बर अंक में भगतपुरा के जीतेन्द्र शेखावत पर छपा लेख
इस लेख को यहाँ क्लिक कर पत्रिका के डिजिटल अंक में भी पढ़ा जा सकता है (पेज नंबर ३४-३५)
Sep 14, 2012
Jul 17, 2012
गांव का रा.उच्च प्राथमिक विद्यालय
देश की आजादी के बाद गांवों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए सरकार ने गांवों में स्कूलें खोली उसी दौरान सन् 1953 में हमारे गांव भगतपुरा में भी प्राथमिक शिक्षा स्तर की "राजकीय प्राथमिक विद्यालय" की स्थापना की गयी| गांव के पास ही के कस्बे के रहने वाले श्री चांदमल जी शर्मा इस विद्यालय के प्रथम प्रधानाध्यापक बने| स्कूल बनने के पहले वर्ष में लगभग पच्चीस छात्रों ने शिक्षा ग्रहण करने की शुरुआत की|
विद्यालय की स्थापना के समय ही गांव वालों ने विद्यालय के लिए पर्याप्त भूमि उपलब्ध करा दी थी उसी भूमि पर दो कमरे बनाकर स्कूल की शुरुआत की गयी|
मैंने भी गांव के इसी स्कूल से प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की है हमारे समय तक स्कूल में तीन पक्के कमरे, एक बड़ा हाल जिसकी छत पर लोहे के चद्दर थे आज भी मुझे याद है| गर्मियों में स्कूल के बाहर एक बड़े खेजड़े के पेड़ के नीचे लगी हमारी क्लास के दृश्य अभी भी आँखों में समाये है|
1977 में जब राजस्थान में श्री भैरोंसिंह जी मुख्यमंत्री बने तब उनकी बनायीं योजना के तहत गांव की प्राथमिक स्कूल को प्रमोन्नत कर उच्च प्राथमिक स्तर तक किया गया| प्राथमिक शिक्षा के बाद गांव के छोटे छोटे बच्चों को पास ही के कस्बे खुड में आगे की शिक्षा के लिए चार किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था| जो प्रमोन्नत होने के बाद छात्रों को दूर जाने की समस्या से छुटकारा मिल गया|
गांव में दो प्राइवेट स्कूल होने के बाद भी गांव के इस सरकारी विद्यालय ने अपना महत्त्व नहीं खोया, आज भी इस विद्यालय में 115 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे है|
कक्षा आठवीं तक के छात्रों को पढाने के लिए यहाँ कुल छ: अध्यापक है| पड़ौसी गांव के निवासी श्री भंवरलाल वर्मा वर्तमान में इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक है जिनके निर्देशन में गांव की इस स्कूल का परीक्षा परिणाम पिछले पांच वर्षों में १००% रहा है|
यही नहीं वर्ष 2003 में इसी स्कूल के एक वरिष्ठ अध्यापक श्री सुल्ताना राम जी, निवासी गोठड़ा तगेलान को उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित किया गया था|
पूर्व अध्यापकों श्री लक्ष्मण राम जी बेनीवाल,श्री इन्द्रसिंह जी शेखावत,श्री सोहनलाल जी काला,श्री मुरारीलाल जी शर्मा आदि ने भी अपने अपने कार्यकाल के दौरान इस स्कूल में शिक्षा स्तर को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देकर अपने कर्तव्य का पुरी तरह पालन किया|जिसे आज भी उनके छात्र याद करते है|
विद्यालय की स्थापना के समय ही गांव वालों ने विद्यालय के लिए पर्याप्त भूमि उपलब्ध करा दी थी उसी भूमि पर दो कमरे बनाकर स्कूल की शुरुआत की गयी|
मैंने भी गांव के इसी स्कूल से प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की है हमारे समय तक स्कूल में तीन पक्के कमरे, एक बड़ा हाल जिसकी छत पर लोहे के चद्दर थे आज भी मुझे याद है| गर्मियों में स्कूल के बाहर एक बड़े खेजड़े के पेड़ के नीचे लगी हमारी क्लास के दृश्य अभी भी आँखों में समाये है|
1977 में जब राजस्थान में श्री भैरोंसिंह जी मुख्यमंत्री बने तब उनकी बनायीं योजना के तहत गांव की प्राथमिक स्कूल को प्रमोन्नत कर उच्च प्राथमिक स्तर तक किया गया| प्राथमिक शिक्षा के बाद गांव के छोटे छोटे बच्चों को पास ही के कस्बे खुड में आगे की शिक्षा के लिए चार किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था| जो प्रमोन्नत होने के बाद छात्रों को दूर जाने की समस्या से छुटकारा मिल गया|
गांव में दो प्राइवेट स्कूल होने के बाद भी गांव के इस सरकारी विद्यालय ने अपना महत्त्व नहीं खोया, आज भी इस विद्यालय में 115 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे है|
कक्षा आठवीं तक के छात्रों को पढाने के लिए यहाँ कुल छ: अध्यापक है| पड़ौसी गांव के निवासी श्री भंवरलाल वर्मा वर्तमान में इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक है जिनके निर्देशन में गांव की इस स्कूल का परीक्षा परिणाम पिछले पांच वर्षों में १००% रहा है|
यही नहीं वर्ष 2003 में इसी स्कूल के एक वरिष्ठ अध्यापक श्री सुल्ताना राम जी, निवासी गोठड़ा तगेलान को उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित किया गया था|
पूर्व अध्यापकों श्री लक्ष्मण राम जी बेनीवाल,श्री इन्द्रसिंह जी शेखावत,श्री सोहनलाल जी काला,श्री मुरारीलाल जी शर्मा आदि ने भी अपने अपने कार्यकाल के दौरान इस स्कूल में शिक्षा स्तर को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देकर अपने कर्तव्य का पुरी तरह पालन किया|जिसे आज भी उनके छात्र याद करते है|
Labels:
गावं के बारे में,
गांव के शिक्षा केन्द्र,
सुविधाएँ
Jun 26, 2012
एक शिक्षित युवा का कृषि प्रेम

सो अपने पिता के रिटायर होते ही जीतू भी अपना जमा जमाया शोरूम अपने छोटे भाई के हवाले कर पिता के साथ गांव आ गया| और पिता के साथ अपने खेत के कृषि कार्य में लग गया| आज भी खेत से बाहर जब भी जीतू किसी को मिलता है तो कोई सोच भी नहीं सकता कि -कंधे पर लेपटॉप लटकाए, ब्रांडेड कपड़े पहने, हाथ में दो आधुनिक तकनीकि से लैश मोबाइल लिए मिलने वाला व फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाला जीतू कृषि कार्य भी कर सकता है ? पर यह एकदम सच है कि यही बी.एस.सी तक शिक्षित जीतू जब खेतों में पहुँचता है तो अपने ब्रांडेड कपड़े खोल ठीक उसी तरह कृषि कार्य में लग जाता है जैसे गांव का कोई आम किसान लगता है| फावड़े से कहीं गड्ढा खोदना हो, घास काटनी हो,ट्रेक्टर ट्रोली में प्याज के कट्टे लादने हो या गेहूं की बोरियां लादनी हो जीतू के साथ काम करने वाले मजदूर भी उसका मुकाबला नहीं कर सकते|
और हां दिनभर कृषि कार्य करने,पशु आहार बेचने के बाद शाम होते ही देर रात तक जीतू गांव के कई छात्रों को अंग्रेजी विषय भी पढाता है|

पिछले दिनों गांव अपनी गांव यात्रा के दौरान जब मैं जीतू व उसके पापा से मिलने उनके खेत में गया तो जीतू कृषि कार्य में लगा था, उसे कृषि कार्य करते देख एक बार तो मुझे भी यकीन नहीं हुआ कि शहर में पला बढ़ा, शिक्षित युवक इस तरह कृषि कार्य में तल्लीनता से लग सकता है ?

दोनों पिता पुत्र का मानना है कि फसल निकलते ही मंडियों में उपज का सही मूल्य नहीं मिलता इसलिए इन्होंने अपने खेत में ही अपनी फसल को सुरक्षित रखने के लिए एक बहुत बड़ा चद्दर का शेड बनवा लिया जिसके नीचे अपनी उपज को कई महीनों तक रखकर अच्छे भाव मिलने पर बेचा जा सके|
इस तरह दोनों पिता पुत्र अपनी शहरी पृष्ठ भूमि व कारखानों में कार्य करने के बावजूद आज उस खेती में भी सफल है जिसमे परम्परागत किसान कुछ भी मुनाफा नहीं कमा पाता |
एक तरफ गांव से पढ़ लिखकर गांव के युवक गांव छोड़ शहरों की ओर पलायन कर रहें है वहीँ जीतू ने शहर छोड़, शहर में अपना जमा जमाया शोरूम छोड़, अपनी अच्छी शिक्षा के बावजूद गांव में आकर कृषि कार्य को अपनाया यह कोई कम बड़ी बात नहीं| उसके पिता भी चाहते तो रिटायर होने के बाद अन्य लोगों की तरह ही शहर में बस सकते थे पर शहर में अपना बना बनाया मकान छोड़ जीतू के साथ अपने पूर्वजों द्वारा छोड़ी जमीन पर कृषि कार्य कर रहे है|
यह उन लोगों के लिए भी प्रेरणा है जो यह सोचते है कि गांवों में कुछ नहीं रखा, तरक्की करनी हो तो शहरों की ओर ही पलायन करो| पर जीतू और उसके पिता दोनों ने ही इस बात को झुठलाया है कि कमाई सिर्फ शहरों में ही नहीं गांव में भी की जा सकती है|
Jun 24, 2012
गांव का "ब्राईट फ्यूचर कंप्यूटर एजुकेशन सेंटर"

हमारे गांव के भी कई परिवार रोजगार व अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए गांव से पलायन कर गए उनकी सुनी पड़ी हवेलियाँ इस बात की पुष्टि करती है कि-"यदि गांव में रोजगार के उचित अवसरों के साथ यदि बच्चों के अच्छी शिक्षा व्यवस्था होती तो आज उन परिवारों को गांव से पलायन कर शहरों में विस्थापित नहीं होना पड़ता|
लेकिन अब गांव की परिस्थितियां बदली है, पहले की अपेक्षा गांव में रोजगार के साधन बढ़ें ही है और साथ ही शिक्षा के लिए भी पर्याप्त साधन बढ़ें है| आज गांव में दसवीं तक पढ़ाई के लिए अंग्रेजी माध्यम की प्राइवेट स्कुल संचालित है तो उसके बाद पास ही कस्बे लोसल में बड़ी संख्या में अच्छे स्कुल खुले है जिनकी बसें गांव में छात्रों को लेने के लिए आ जाती है साथ ही गांव से महज एक डेढ़ किलोमीटर दूर बाबा खिंवादास महाविद्यालय है जहाँ से छात्र आसानी से अपनी कालेज की पढ़ाई गांव में ही रहकर पूरी कर सकतें है|
गांव में व आस-पास के कस्बे में कई अच्छे स्कुल व कालेज होने के बावजूद गांव लोगों को अपने बच्चों को नई तकनीकि के साथ चलने हेतु कंप्यूटर शिक्षा के लिए सेंटर की आवश्यकता महसूस हो रही थी जिसे समझा गांव की ही एक होनहार बालिका सुश्री सोनम शेखावत ने|

आज सोनम शेखावत के इस कंप्यूटर सेंटर में साठ बच्चे व बालिकाएं कंप्यूटर शिक्षा ग्रहण कर रहे है, पढाने के लिए सोनम के साथ रामकुमार कुमावत भी जी जान से जुटे है| यह कंप्यूटर सेंटर सरकार से भी मान्यता प्राप्त है, यहाँ कई ऐसे कोर्स भी है जिन्हें पढ़ने वालों को सरकारी सहायता भी मिलती है|
इन दोनों के प्रयासों के चलते ही आज भगतपुरा गांव में छोटे छोटे बच्चे तक कंप्यूटर शिक्षा में पारंगत है व गांव से बच्चों को शिक्षा दिलवाने के नाम पर होने वाले शहरों की ओर पलायन में बहुत कमी आई है| साथ ही इसी वजह से आज गांव का कोई बच्चा ऐसा नहीं होगा जो इस भगतपुरा ब्लॉग को ना पढता हो|
Jun 17, 2012
मीडिया में भगतपुरा ब्लॉग की चर्चा
Mar 18, 2012
गांव की नवनिर्मित गौ-शाला
हमारे गांव भगतपुरा में भी यही हुआ आस-पास के गांवों की छोड़ी गायों के झुण्ड ने किसानों की फसलों को नुक्सान पहुंचाकर किसानों की नींद हराम करदी|
गांव में हर वर्ष किसान किसी सुनी पड़ी हवेली में गायों को बंद कर वहां उनके लिए चारा डालकर अपनी फसलों को बचाने का अस्थाई उपाय अक्सर हर वर्ष करते रहते थे|
गांव के किसानों को गौ-शाला बनाने व इसे संचालित करने के लिए श्री रामनिवास मिश्रा का आभार मानते हुए इसके सञ्चालन में सक्रीय भागीदारी निभानी चाहिए साथ हर खेत से इन गायों के लिए हर वर्ष कम से कम एक गाड़ी चारा अवश्य भिजवाना चाहिए| इस गौ-शाला का सफल सञ्चालन ही गांव के किसानों के लिए फायदेमंद है|
भगतपुरा.कॉम इस शानदार गौ-शाला के निर्माण और संचालन के लिए श्री रामनिवास जी मिश्रा का हार्दिक आभार प्रकट करती है|
Subscribe to:
Posts (Atom)