गांव की इस बार की यात्रा में मैं सोमवार सुबह २.३० बजे ही पहुँच गया था लगभग तीन घंटे सोने के बाद जैसे नींद खुली चिड़ियों की चहचाहट,मोरों की पिहू-पिहू और तितर की किल्लू-किल्लू की मन भावन कलरव आवाजे सुनाई देने लगी हाँ इस बार तलाई में ठीक ठाक पानी इक्कठा होने के बावजूद में रात्रि में मेंढकों की टर्र टर्र सुनाई नहीं दी | वरना मेंढकों का संगीत तो रात भर सुनना पड़ता था ..
खैर सुबह उठते ही दैनिक कार्यों से निवृत हो बच्चो के साथ खेतों की यात्रा शुरुआत की गयी ,भरत और विवेक भी इटली से गांव आये हुए थे उन्हें भी खेतों में गए कई वर्ष हो चुके थे सो आज उन्होंने भी खेतों में मेरे साथ घुमने व खेतो में फोटो खिंचवाने का पूरा लुफ्त उठाया |




"यह दुनियां" | ज्ञान दर्पण