Welcome to Bhagatpura, Dist. Sikar (Rajasthan)

Sep 13, 2010

एक साधारण पर एतिहासिक जगह


चित्र में टूटी फूटी छप्पर वाली यह जगह आपको बेशक एक साधारण जगह दिखाई दे रही है पर भगतपुरा स्थित यह एतिहासिक जगह भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति स्व.श्री भैरू सिंह जी की स्मृतियों से जुडी है | यह वही जगह है जहाँ श्री भैरूसिंह जी ने अपनी राजनैतिक यात्रा की शुरुआत के लिए 1952 के चुनाव में पहली चुनावी रणनीतिक मंत्रणा बैठक की थी |
1952 के चुनाव में स्व.बाबोसा (भैरूसिंह जी) ने अपने बचपन के मित्र और सहयोगी राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सोभाग्यसिंह जी के साथ यही बैठकर चुनाव प्रचार के लिए पहली मंत्रणा की व यहीं से अपना चुनाव अभियान शुरू किया |
1952 के इस चुनाव में हालाँकि दोनों मित्र आमने सामने चुनाव लड़ने वाले थे पर श्री सोभाग्यसिंह जी का रामराज्य परिषद् पार्टी से भरा नामांकन पत्र कुछ त्रुटियों के चलते निरस्त हो गया था | बाद में इस स्थान पर चुनावी रणनीतिक मंत्रणा के बाद आदरणीय बाबोसा श्री सोभाग्यसिंह जी के साथ यही से चुनाव प्रचार के लिए निकल पड़े और वह चुनाव जीतकर पहली बार राजस्थान विधानसभा पहुंचे और बाद में अपनी राजनैतिक यात्रा के दौरान राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के बाद भारत के उपराष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया |
स्व.बाबोसा की इस जगह पर एक बार फिर आकर स्मृतियाँ ताजा करने की इच्छा थी जो उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव लड़ने से ठीक पहले बीकानेर स्थित श्री सोभाग्यसिंह जी के घर पर उनकी एक पुस्तक का विमोचन करने के बाद व्यक्त की थी पर अपनी व्यस्त राजनैतिक दिनचर्या के चलते वे यहाँ दुबारा नहीं आ सके |

बीकानेर स्थित श्री सोभाग्यसिंह जी के घर 1952 के अपने पहले चुनाव की स्मृतियाँ ताजा करते हुए स्व.बाबोसा साथ में है श्री सोभाग्यसिंहजी व राजस्थान के पूर्व मंत्री श्री राजेंद्रसिंह राठौड़



हठीलो राजस्थान-9 |
शर्त जीतने हेतु उस वीर ने अपना सिर काटकर दुर्ग में फेंक दिया |
नरेगा की वजह से महंगाई में वृद्धी
ताऊ पहेली - 91 (Bhoram Dev Temple-Chattisgarh)

Aug 25, 2010

अच्छी बारिस से गांव में लहलहाती फसलें

पिछले कई वर्षों की तुलना में इस वर्ष गांव में अच्छी बारिस हुई जिसके चलते गांव में जिधर नजर दौड़ाई जाये उधर ही बाजरे,मुंग,मोठ,गवार आदि की लहलाती फसल व हरियाली ही हरियाली पसरी नजर आती है |
गांव की इस बार की यात्रा में मैं सोमवार सुबह २.३० बजे ही पहुँच गया था लगभग तीन घंटे सोने के बाद जैसे नींद खुली चिड़ियों की चहचाहट,मोरों की पिहू-पिहू और तितर की किल्लू-किल्लू की मन भावन कलरव आवाजे सुनाई देने लगी हाँ इस बार तलाई में ठीक ठाक पानी इक्कठा होने के बावजूद में रात्रि में मेंढकों की टर्र टर्र सुनाई नहीं दी | वरना मेंढकों का संगीत तो रात भर सुनना पड़ता था ..
खैर सुबह उठते ही दैनिक कार्यों से निवृत हो बच्चो के साथ खेतों की यात्रा शुरुआत की गयी ,भरत और विवेक भी इटली से गांव आये हुए थे उन्हें भी खेतों में गए कई वर्ष हो चुके थे सो आज उन्होंने भी खेतों में मेरे साथ घुमने व खेतो में फोटो खिंचवाने का पूरा लुफ्त उठाया |




"यह दुनियां" | ज्ञान दर्पण