जीतू (जितेन्द्र शेखावत) बचपन से ही अपने माता पिता के साथ शहर में ही पला बढ़ा, शहर में रहते हुए विज्ञान स्नातक (बी.एस.सी ) तक की शिक्षा ग्रहण की| शहरों के दूसरे बच्चों की तरह जीतू को भी ब्रांडेड कपड़े पहनने ,चश्में व अन्य आधुनिक तकनीकि से लैश गैजेट रखने का शौक था और अब भी है| शिक्षा पूरी करने के बाद जीतू के पिताजी ने उसे शहर में एक शोरूम भी व्यवसाय करने हेतु खुलवा दिया, जिस पर उसे अच्छी कमाई होने लगी पर जीतू में मन में तो शहर की आप-धापी से दूर गांव के खेतों की शांति घर जमाये बैठी थी|
सो अपने पिता के रिटायर होते ही जीतू भी अपना जमा जमाया शोरूम अपने छोटे भाई के हवाले कर पिता के साथ गांव आ गया| और पिता के साथ अपने खेत के कृषि कार्य में लग गया| आज भी खेत से बाहर जब भी जीतू किसी को मिलता है तो कोई सोच भी नहीं सकता कि -कंधे पर लेपटॉप लटकाए, ब्रांडेड कपड़े पहने, हाथ में दो आधुनिक तकनीकि से लैश मोबाइल लिए मिलने वाला व फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाला जीतू कृषि कार्य भी कर सकता है ? पर यह एकदम सच है कि यही बी.एस.सी तक शिक्षित जीतू जब खेतों में पहुँचता है तो अपने ब्रांडेड कपड़े खोल ठीक उसी तरह कृषि कार्य में लग जाता है जैसे गांव का कोई आम किसान लगता है| फावड़े से कहीं गड्ढा खोदना हो, घास काटनी हो,ट्रेक्टर ट्रोली में प्याज के कट्टे लादने हो या गेहूं की बोरियां लादनी हो जीतू के साथ काम करने वाले मजदूर भी उसका मुकाबला नहीं कर सकते|
और हां दिनभर कृषि कार्य करने,पशु आहार बेचने के बाद शाम होते ही देर रात तक जीतू गांव के कई छात्रों को अंग्रेजी विषय भी पढाता है|
पिछले दिनों गांव अपनी गांव यात्रा के दौरान जब मैं जीतू व उसके पापा से मिलने उनके खेत में गया तो जीतू कृषि कार्य में लगा था, उसे कृषि कार्य करते देख एक बार तो मुझे भी यकीन नहीं हुआ कि शहर में पला बढ़ा, शिक्षित युवक इस तरह कृषि कार्य में तल्लीनता से लग सकता है ?
दोनों पिता पुत्र से औपचारिक बात चीत के बाद कृषि पर काफी देर तक मेरी चर्चा हुई| दोनों ही कृषि कार्य में आने वाली लागत और उसके बाद कृषि उपज का मंडियों में बहुत कम मूल्य मिलने की बात से चिंतित थे पर दोनों का मानना था कि अब किसान परम्परागत खेती से मुनाफा नहीं कमा सकता साथ ही मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं के चलते अब खेतों में होने वाली मजदूर कमी के वाबजूद वे ही किसान खेती करने में कामयाब होंगे जो खूद मेहनत कर सकते है और जो मजदूरों पर निर्भर नहीं है| साथ ही कृषि कार्य के साथ पशुपालन भी जरुरी है अकेली कृषि से मुनाफा कमाकर किसान के लिए घर चलाना भी मुश्किल है इसी परेशानी को देखते हुए जीतू व उसके पिता ने कृषि के साथ पशुपालन का कार्य अपनाते हुए कई सारी भेड़ बकरियां भी पाली है जिन्हें खिलाने के लिए चारे के लिए इन्होंने शहर से गांव आते ही कुछ वर्ष पहले ही अपने खेत की मेड पर पेड लगा दिए थे जो भेड़ बकरियों के लिए अब चारा उपलब्ध करावा देते है|कृषि के साथ पशुपालन करने से एक और फायदा होता है - खेत में प्रचुर मात्रा में खाद मिल जाती है|
दोनों पिता पुत्र का मानना है कि फसल निकलते ही मंडियों में उपज का सही मूल्य नहीं मिलता इसलिए इन्होंने अपने खेत में ही अपनी फसल को सुरक्षित रखने के लिए एक बहुत बड़ा चद्दर का शेड बनवा लिया जिसके नीचे अपनी उपज को कई महीनों तक रखकर अच्छे भाव मिलने पर बेचा जा सके|
इस तरह दोनों पिता पुत्र अपनी शहरी पृष्ठ भूमि व कारखानों में कार्य करने के बावजूद आज उस खेती में भी सफल है जिसमे परम्परागत किसान कुछ भी मुनाफा नहीं कमा पाता |
एक तरफ गांव से पढ़ लिखकर गांव के युवक गांव छोड़ शहरों की ओर पलायन कर रहें है वहीँ जीतू ने शहर छोड़, शहर में अपना जमा जमाया शोरूम छोड़, अपनी अच्छी शिक्षा के बावजूद गांव में आकर कृषि कार्य को अपनाया यह कोई कम बड़ी बात नहीं| उसके पिता भी चाहते तो रिटायर होने के बाद अन्य लोगों की तरह ही शहर में बस सकते थे पर शहर में अपना बना बनाया मकान छोड़ जीतू के साथ अपने पूर्वजों द्वारा छोड़ी जमीन पर कृषि कार्य कर रहे है|
यह उन लोगों के लिए भी प्रेरणा है जो यह सोचते है कि गांवों में कुछ नहीं रखा, तरक्की करनी हो तो शहरों की ओर ही पलायन करो| पर जीतू और उसके पिता दोनों ने ही इस बात को झुठलाया है कि कमाई सिर्फ शहरों में ही नहीं गांव में भी की जा सकती है|