Dec 31, 2008
गांव का पनघट
चित्र में ये हमारे गांव का पनघट है जो आज वीरान पड़ा है कभी यहाँ पुरे दिन मटके लेकर पानी लेने आने वालों की चहल-पहल लगी रहती थी, आज इस पनघट के नल उखड़ चुके है लेकिन आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले इसी पनघट के इन्ही नलों पर पानी भरने के लिए मटकों की लाइन लग जाया करती थी | सभी जातियों के लिए यहाँ अलग-अलग नल लगे थे अनुसूचित जातियों के लिए अलग व सवर्णों के लिए अलग और सवर्णों में भी ब्राहमणों के लिए अलग नलों की व्यवस्था थी आज सुना पड़ा यह पनघट कभी गांव का एक तरह का सामुदायिक स्थल ही हुआ करता था किसी भी व्यक्ति से मिलना हो सुबह-शाम यहाँ गांव के हर एक आदमी से मुलाकात हो जाती थी क्योंकि पानी लेने सभी ग्रामवासियों को यही आना पड़ता था | गांव से बाहर नौकरी करने वाला कोई भी व्यक्ति जब भी छुट्टी आता था उससे भी यही सभी के साथ मुलाकात हो जाया करती | गांव का हर अच्छा बुरा समाचार इसी पनघट पर मिल जाया करता था | पशुपालक सुबह-शाम अपने-अपने पशुओं को पास ही बनी पानी की खेली में पानी पिलाने लाया करते थे | हम भी सभी दोस्त पानी के मटके भरते हुए ही यहीं खेलकूद व अन्य सामूहिक कार्यों की प्लानिंग कर लिया करते थे और तो और सभी दोस्त रविवार को अपने अपने सारे मैले कपड़े इक्कठे कर यही धोने एक साथ ही आया करते थे क्या मजा आता था उस समय मिलजुल कर कपड़े धोने का, कोई नल से पानी की बाल्टी भर कर ला रहा है,कोई कपडों पर साबुन लगा रहा होता तो कोई धुले कपडों को सुखा रहा होता |
कंधे पर मटका रखकर जब घर में जरुरत का पानी भरते थे तो उस पानी का उपयोग भी बहुत मितव्ययता के साथ होता था जिससे गांव का हर रास्ता,हर किसी के घर में कहीं कीचड़ नही होता था | हमारे द्वारा की गई केसी भी गलतियों के लिए पानी भरते समय वहां आने वाले गांव के बुजुर्गों व ताऊ टाइप लोगों से बहुत सारी उलाहना भरी नसीयते झेलनी पड़ती थी सो हम सभी में से कोई भी बच्चा किसी भी तरह का ग़लत काम करने से बचता था परिणाम स्वरूप डर मारे ही सही बच्चे बुरी आदतों से दूर ही रहते थे इसी पनघट पर बुजुर्ग लोगों द्वारा मिलने वाले उपदेश बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाते थे |
आज से 25 साल पहले घरों में नल लगने बाद से यह पनघट रूपी सामुदायिक स्थल सुना पड़ा है अब गांव में कौन छुट्टी आया पता ही नही चलता, गांव में किसी का कोई दुःख दर्द का समाचार भी आसानी से नही मिलता, गांव का कौनसा बच्चा किसका बेटा है कम ही लोग पहचान पाते है जान पहचान ही कम होती जा रही है |आसानी से और बिना मेहनत किए सभी घरों में नल द्वारा प्रचुर मात्रा में उपयोग लिए के पानी की उपलब्धता ने पानी का दुरूपयोग बढ़ा दिया है हर एक व्यक्ति एक बाल्टी पानी की जगह पॉँच बाल्टी पानी बहाता है दुरूपयोग के चलते रास्तों में,घरों के आगे कीचड़ फैलने लगा वह तो शुक्र है सरकार का जिसने समय रहते पक्की नालिया बना दी वरना रात्रि के समय तो एक घर से दुसरे घर घर जाना भी कीचड़ की वजह से दूभर हो जाता,खैर पक्की सरकारी नालियों ने कीचड़ से तो मुक्ति दिला दी लेकिन गिरते भू-जल के बावजूद हर घर व हर गांव में ऐसे ही हम पानी आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल कर दुरूपयोग करते रहे तो वो दिन दूर नही जब कुएं सुख जायेंगे और हम या हमारी आने वाली पीढियाँ पानी की एक बूंद के लिए भी तरस जायेगी |
गांव स्थित सार्वजनिक कुआँ गांव का बस स्टैंड
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रतन जी,
ReplyDeleteशहरीपना जिस तरह से अपनापन, मासूमियत, भलमनसाहत लीलता चला जा रहा है, उससे तो ऐसा लगता है कि ये सब बातें सिर्फ यादों में ही रह जायेंगीं। लगता क्या है हो ही रहा है।
कितना अच्छा लगता था वो समय, सच मै अब सब कुछ छीनता जा रहा है....
ReplyDeleteनव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
धन्यवाद
... सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletedear ratan sa,
ReplyDeletejai mata ji ki,
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i invite you along with your family to delhi cantt.,my recent posting/locally at delhi.
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regards
ltcdr bcs shekhawat
Sir Jee...Sabhi Ganvon Ka Yahi Haal Hai. Aapne Acha Likha Badhayi Saweekaren. Mere Blog Per Diye Comeent Ke Liye Shukriya per
ReplyDeleteसब सुझाव दे रहे हैं कि उन साहब से पूछा जाये कि उनके घर में कितनी वेश्याएं है...देखिये सब ऐसा ही क्यूँ सोचते हो...उनके घर की महिलाओं की इसमें कोई गलती नहीं, फिर भी उन पर आरोप...क्यूँ? अगर ऐसा करें भी तो उनमे और हममे क्या फर्क रह जायेगा...
hi, it is nice to go through ur blog...well written...by the way which typing tool are you using for typing in Hindi...?
ReplyDeletenow a days typing in an Indian language is not a big task...recently i was searching for the user friendly Indian Language typing tool and found.. "quillapd". do u use the same....?
heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration..!?
Expressing our views in our own mother tongue is a great feeling..and it is our duty too. so, save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue...
try this, www.quillpad.in
Jai...Ho....
राजुल, बहुत ख़ुशी हुई आपका भगतपुरा देखकर. जीवसोरो होग्यो. घणा-घणा रंग आपनै. लखदाद.
ReplyDeleteआपनै. मायड़ भाषा राजस्थानी री मान्यता सारू भी आपांनै कोशिश करणी चहिजै.
'आपणी भाषा-आपणी बात' पर पधारो अर आपरी राय देवो.
सत्यनारायण सोनी, व्याख्याता(हिंदी), परलीका, जिला- हनुमानगढ़.
sirji mai pahle bhi aapse nivedan kar chuka hoon
ReplyDeletewill you talk with me
this is pradeep
from churu
my cell no. +91 9983831415
I am very pleased to know about your villege.Soubhagya singh ji shekhawat is not a general personality,he is a legend,no one can compare him.It is now needfull to wide publications of his creations.Please pardon me,but Dharamveer singh ji,Mahaveer singh ji have to do something abiut it.I am telling truth,Soubhagya singh ji is a richest property of India,we all should take care of his whole literature.
ReplyDeleteMahendra singh shekhawat
Dainik Bhaskar,Bikaner
अपने गाँव क्षेत्र के बारे में लिखा. बहुत सुन्दर.
ReplyDelete-सुलभ (http://arariatoday.com)